श्री गणेशजी
श्री
गणेशजी शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के
कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो
भी संसार के साधन हैं,
उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें
गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के
लिये पहले पूज्य है। ईसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला
सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते है।
गणपति
आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी
विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया
है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का
भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।
चारों
दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक
ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी
नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
कथा
प्राचीन
समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती
और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और
मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने
अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।
कौंच
ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख
माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर
की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक
होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।
काँपते
हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक
के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने
कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि
पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने
अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण
भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे।
गणेश
को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख
सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार मे गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की
पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के
लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और
बोले "पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।" गणेश के रोकने पर
प्रभु ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता
पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के
धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश
की पूजा होती है।
ज्योतिष्शास्त्र
के अनुसार गणेशजी को केतु के रूप मे जाना जाता है, केतु एक छाया ग्रह है,
जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध मे रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नही आता है और बिना ज्ञान के मुक्ति नही है, गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण मे वह विद्यमान है। उदाहरण के
लिये तो जो साधन है वही गणेश है, जीवन को चलाने के लिये अनाज
की आवश्यकता होती है, जीवन को चलाने का साधन अनाज है,
तो अनाज गणेश है, अनाज को पैदा करने के लिये
किसान की आवश्यकता होती है, तो किसान गणेश है, किसान को अनाज बोने और निकालने के लिये बैलों की आवश्यक्ता होती है तो बैल
भी गणेश है, अनाज बोने के लिये खेत की आवश्यक्ता होती है,
तो खेत गणेश है, अनाज को रखने के लिये भण्डारण
स्थान की आवश्यक्ता होती है तो भण्डारण का स्थान भी गणेश है, अनाज के घर मे आने के बाद उसे पीस कर चक्की की आवश्यक्ता होती है तो चक्की
भी गणेश है, चक्की से निकालकर रोटी बनाने के लिये तवे,
चीमटे और रोटी बनाने वाले की आवश्यक्ता होती है, तो यह सभी गणेश है, खाने के लिये हाथों की आवश्यक्ता
होती है, तो हाथ भी गणेश है, मुँह मे
खाने के लिये दाँतों की आवश्यक्ता होती है, तो दाँत भी गणेश
है, कहने के लिये जो भी साधन जीवन मे प्रयोग किये जाते वे
सभी गणेश है, अकेले शंकर पार्वते के पुत्र और देवता ही नही।
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं-
1-सुमुख,
2-एकदंत,
3-कपिल,
4-गजकर्णक,
5-लंबोदर,
6-विकट,
7-विघ्न-नाश,
8-विनायक,
9-धूम्रकेतु,
10-गणाध्यक्ष,
11-भालचंद्र,
12-
गजानन।
उप्रोक्त
द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि मे आया है| विद्यारम्भ
तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है|
सभी धर्म प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि
तरफ से सादर प्रणाम।
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